ज़रूरी चीज़ें / कल्पतरु / सुशोभित
सुशोभित
बहुत सी चीज़ें ऐसी थीं, जो ज़रूरी तो थीं, लेकिन फ़ौरन उनकी कोई ज़रूरत नहीं थी.
ज़रूरत पड़ने पर कभी काम आएंगी, यह सोच कर उन्हें ले लिया गया था, अलबत्ता जिन चीज़ों की सचमुच ही ज़रूरत थी, उनकी फ़ेहरिस्त बनाई जाती तो माचिस की डिबिया के पीछे भी लिखी जा सकती थी.
जिन चीज़ों की कभी ज़रूरत हो सकती थी, उन्हें जब ले आया गया तो सवाल उट्ठा, अब इन्हें रक्खा कहां जाए.
ये दुनिया का सबसे ज़रूरी सवाल है कि ज़रूरी मान ली गई चीज़ों को कहां रखें, और कैसे?
चूंकि चीज़ें क़ीमती थीं, तमाम चीज़ों की तरह, इसलिए उन्हें ऐसी जगह सहेजकर रख दिया गया, जहां धूप लगे ना हवा, नज़र लगे ना ख़याल.
ऐसा नहीं था कि चीज़ों को रखकर भुला दिया गया था, लेकिन तमाम चीज़ों के बीच वो कहीं गुम हो गई थीं. और बाद मुद्दत के जब आन ही पड़ी ज़रूरत तो खोजे से भी ना मिलीं!
बर्तोल्त ब्रेख़्त ने कहा था-- "जाने कहां मेरा टोप रखा है, जाने कहां मेरे पिछले छह महीने!"
कभी कभी मुझे लगता कि ज़िंदगी रखकर भूले गए चश्मों, छतरियों, किताबों, बारिशों और चांदनियों से भरी एक संदूक़ची थी!
चीज़ों को तरतीब से सिलसिलेवार जमाकर रखा जाय, इसके लिए एक ज़िंदगी काफ़ी कहां थी? या तो आप जी सकते थे, या चीज़ों को करीने से सजा सकते थे.
जिस दिन हम मरेंगे, उस दिन हमारा कमरा बुहारा नहीं जा सकेगा.
अपने पीछे एक बेतरतीब कमरा छोड़ जाने का अपराध जिन्हें ग्लानि से नहीं भरता, जीवन को वे ही जी सकते हैं बेखटके!