मृत्यु और कामना / कल्पतरु / सुशोभित
सुशोभित
मृत्यु और कामना. कामना और मृत्यु.
लोग कहते हैं दो ध्रुव हैं- उत्तर और दक्षिण. मैं कहता हूं- झूठ! मृत्यु और कामना, ये दो ध्रुव हैं.
लोग कहते हैं दो लोक हैं- आकाश और पाताल. मैं कहता हूं- झूठ! मृत्यु और कामना, ये दो लोक हैं.
मेरा जीवन मृत्यु और कामना के तट पर बहने वाली नदी है. मेरा कोई और ठौर नहीं.
मैं कितनी कामनाओं से भरा हुआ हूं, और इसीलिए कितनी मृत्युओं से!
मैं कामनाओं का प्रेत हूं, और इसीलिए मृत्यु मेरी छिन्नमस्ता मातृका बन गई है!
जितनी बार मैंने कामना की है, उतनी बार मरा हूं.
जितनी बार मरा हूं, उतनी बार कामनाओं के लोक में लौट आया हूं.
एक मृत्यु ही है, जिसकी कामना मैं नहीं करता.
जिस दिन "मरणलिप्सा" होगी, उस दिन क्या लौटकर आना नहीं होगा? उस दिन क्या मर जाएगी मृत्यु?
समुद्र ना रहा तो तृषा कहां रहेगी?
दोनों तट टूटे तो नदी कहां बहेगी?