मेपल का पत्ता / कल्पतरु / सुशोभित
सुशोभित
सुदूर अमरीका से उपहार मिला. दो पुस्तकें, जिनमें दो सूखे पत्ते. एक मेपल का, एक ओक का. पतझड़ के पीले, गाढ़े, कत्थई रंग वाले. पत्तों की दुनिया के ये गर्वीले नागरिक हैं!
मेपल का पत्ता संसार में सबसे सुंदर होता है. सृष्टा ने बहुत अनुराग से, बहुत लयपूर्ण रेखाओं के साथ यह चित्र बनाया है. पतझड़ किसी मुसव्विर की तरह इसमें गहरे, उदास रंग भरता है. पतझड़ मेरी आत्मा का भी कैनवस है. उसके रंग गीले हैं. वसन्त के उदग्र उत्सव से कभी निभी नहीं. ये बहार उनको मुबारक जिनके लिए वह वन्दनवार है. मेरे लिए तो पतझड़ ही मन का पार्श्वसंगीत. मेपल का पत्ता मेरे देश में नहीं होता. इससे पहले मैंने ये कभी देखा न था. इसकी लालसा बहुत थी. ओक अवश्य मेरे देश में होता है. यहाँ वो बलूत कहलाता है. पर वो पहाड़ों पर होता है. मैंने कभी पहाड़ भी नहीं देखा. लैंसडोन में चीड़ के पेड़ हैं. उसके फूल कठगुलाब जैसे लगते हैं. पिछले जन्म में मर गई एक लड़की कानों में वो कठगुलाब पहनकर इतराती थी. मैं कभी लैंसडोन भी नहीं गया, किंतु मृतकों के नाम और चेहरे मुझे भूलते नहीं.
जिस पेड़ पर ये पत्ते फूले होंगे, उस पर अभी हिम का संस्पर्श नहीं होगा? दूर देश में इन्होंने कभी सोचा होगा कि ये मेरे पास आएंगे! जब डाल से टूटे होंगे तो क्या सोचा होगा कि सात समन्दर लांघ लेंगे? किताब में रखा मोरपंख बन जाएंगे? जो डाल से टूटा हो, उसकी नियति का लेखा तो विधाता के पास ही होगा. मैं भी टूटा हूं, मेरे भीतर भी पतझड़ की आवारा धुन है! मेरा ठौर कहां, ये कौन जानता है? हवा जहाँ ले जाए, चला जाता हूँ. मेपल के पत्ते जैसा सुंदर, निरुद्वेग और बटोही! उतना ही अकारण!
इनमें से एक किताब पीतर हान्दके की है, जिसने बीते दिनों नोबेल पुरस्कार का मुकुट पहना. स्लो होमकमिंग. घर की डगर पर एक लम्बी, धीमी आमद. दूसरी किताब रिल्के के पत्रों की है. द डार्क इंटरवल. लेटर्स ऑन लॉस, ग्रीफ़ एंड ट्रांसफ़ॉर्मेशन! नवम्बर के व्यतीत दिनों में ये जो साल धीरे धीरे मर रहा है, उसका तीन शब्दों में यही परिचय है-- लॉस, ग्रीफ़ एंड ट्रांसफ़ॉर्मेशन! क्षति, शोक और रूपान्तरण.
इस साल लैज़रस मर गया. इसी साल लैज़रस फिर जी भी गया. लेकिन जो जी गया, वो वही थोड़े ना था, जो मर गया था! उपहार भेजने वाले (या वाली?) ने अपना नाम नहीं लिखा है, केवल "मेहरबान दोस्त" के नाम से दस्तख़त किए हैं. ये मेहरबानी सिर आंखों पर. इस उपहार ने मेरे भीतर एक उदास मौसम रच दिया. ये मौसम एक पीले पत्ते की तरह मैंने अपनी आत्मा की किताब में रख दिया है.
मुझे कभी चांदी का सिक्का मत देना, ज़री वाला रूमाल नहीं, अभिमान से भरने वाला आईना नहीं, जिस पर हाथीदाँत की फ्रेम! जब भी मुझे कोई उपहार देना, पतझड़ का सूखा पत्ता देना-- किसी किताब की संदूक़ची में.
मेहरबां दोस्त, मैं इसके लिए मशकूर हूं.