व्याप जाना / कल्पतरु / सुशोभित

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
व्याप जाना
सुशोभित


जीवन के ज्यामितीय प्रसार में आपकी चेतना की उपस्थिति एक कोण की तरह होती है। आप स्पेस में पड़ी एक गांठ हैं! एक व्यूह का सिंहद्वार!

जैसे कमरे का एक कोना, जहां से आप देखते हैं, आपके होने का एक कोण बनाते हुए। और जहां से आपका देखना दूसरों के भीतर आपके देखने का एक कोण बनाता है।

एक जीवित मनुष्य की उपस्थिति को भुलाना लगभग असम्भव है, चाहे उसके भीतर कितना ही मौन क्यों न हो, उसकी जीवन-चेतना कितनी ही निश्चल क्यों न हो। स्पेस में उसके होने का कोण निरंतर बना रहेगा, आपकी आंख के कोने में। आपके भीतर एक दुराव रचते हुए।

इस दुनिया से आपका चले जाना उस एक कोण की क्षति है। इस दुनिया से आपका चले जाना एक बहुत बड़े पैनोरेमा में से एक फ्रेम का कम हो जाना है। किंतु इससे सृष्टि का समग्र चित्र खंडित नहीं होता! स्पेस में एक फांक ज़रूर पड़ जाती है। और, कमरे का कोना एक ठोस निर्वात से भर जाता है!

मीमांसकों का मत था कि अंधकार प्रकाश का अभाव नहीं होता। वह एक स्वतंत्र भावरूप पदार्थ है।

वैसे ही ये लगता है कि अनुपस्थिति एक अभाव नहीं है, वह एक भावरूप अवस्था है।

किसी व्यक्ति की अनुपस्थिति उसी तरह से उसकी चेतना की निरंतरता है, जैसे अनुगूंजें किसी मरती हुई ध्वनि की निरंतरता होती हैं।

एक नन्हा-सा बिंदु भी मरकर समूची भावसृष्टि में व्याप जाता है.