समुद्रतट पर सेब / कल्पतरु / सुशोभित
सुशोभित
[ अंद्रेई तारकोव्स्की की फ़िल्म 'इवान का बचपन' का एक दृश्य ]
सेब से लदी एक लॉरी समुद्र की तरफ़ जा रही है! और बारिश हो रही है, और पृष्ठभूमि में संगीत है।
उसमें से सबसे मीठा सेब चुनकर एक मरा हुआ लड़का एक मरी हुई लड़की को देता है। लेकिन लड़की उसे खाने से इनकार कर देती है, क्योंकि वो डरी हुई है।
बिजली चमकती है और पृष्ठभूमि का अंधकार सफ़ेद भयावह रौशनियों से भर गया है। दृश्य बदल जाता है! अब चमकीली धूप खिली है और सामने समुद्र है। लॉरी तेज़ी से समुद्र की तरफ़ दौड़ती है। बहुत सारे सेब लॉरी से गिरकर बिखर जाते हैं और रेत में धंस जाते हैं।
कुछ घोड़े चले आते हैं और सेबों को चरने लगते हैं।
ये वहीं घोड़े हैं, जिन्हें क्लीश्मा नदी के किनारे व्लादीमीर क़स्बे में तातारों ने ज़िंदा जला देना था।
क्रूर यथार्थ और कोमल स्वप्नाभास आपस में घुल-मिल जाते हैं!
समुद्र की तरफ़ दौड़ती लॉरी से गिरे सेब, गीली रेत में धंसे, अकारण की धूप में चमकते हुए! कुछ खाए, कुछ अधखाए सेब, जिन्हें गल जाना था, जल जाना था, भीग जाना था, एक मरी हुई लड़की के द्वारा ठुकरा दिया जाना था। कुछ मीठे, कुछ कड़वे सेब। बस इतना ही।
जैसे कि यह जीवन। समुद्र तट पर बिखरे सेबों-सा सुंदर, और उतना ही अकारण, उतना ही निष्प्रयोज्य। जैसे ये दिन, जैसे ये साल। ओह अंद्रेयूष्का, तुम आज होते तो तुम्हारे नाम लिखता एक चिट्ठी, जैसे कज़ान के किसान लिखते थे तुम्हारी फ़िल्मों में अंधड़ से लालटेनें बुझ जाने के बाद, जिन्हें पढ़कर रोते थे तुम।
जाने कितने दिन धूप में झुलसे, जाने कितने मौसम रेत में धंसे, जाने कितने साल नमक में गल गए, और मेरी आत्मा की गूंजें मरती रहीं।
मृत्युओं से भरा एक और साल मर रहा है, मृत्युओं से भरी इतनी सदियों के सम्मुख। ओह अंद्रेयूष्का, तब एक तुम्हें ही याद करता हूं आज!