गद्य कोश पहेली 20 अक्तूबर 2013

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पहचानिये किस प्रसिद्ध भारतीय क्रांतिकारी ने फांसी के पूर्व यह भूमिका लिखी हैं?

अन्तिम समय निकट है। दो फांसी की सजाएं सिर पर झूल रही हैं। पुलिस को साधारण जीवन में और समाचारपत्रों तथा पत्रिकाओं में खूब जी भर के कोसा है। खुली अदालत में जज साहब, खुफिया पुलिस के अफसर, मजिस्ट्रेट, सरकारी वकील तथा सरकार को खूब आड़े हाथों लिया है। हरेक के दिल में मेरी बातें चुभ रही हैं। कोई दोस्त आशना, अथवा मददगार नहीं, जिसका सहारा हो। एक परम पिता परमात्मा की याद है। गीता पाठ करते हुए सन्तोष है कि -

जो कुछ किया सो तैं किया, मैं कुछ कीन्हा नाहिं
जहां कहीं कुछ मैं किया, तुम ही थे मुझ नाहिं

ब्रह्मण्याधाय कर्माणि संगं त्यक्‍त्वा करोति यः
लिप्यते न स पापेभ्योः पद्‍मपत्रमिवाम्भसः
- भगवद्‍गीता/५/१०

'जो फल की इच्छा को त्याग करके कर्मों को ब्रह्म में अर्पण करके कर्म करता है, वह पाप में लिप्‍त नहीं होता। जिस प्रकार जल में रहकर भी कमल-पत्र जल में नहीं होता।'

जीवनपर्यन्त जो कुछ किया, स्वदेश की भलाई समझकर किया। यदि शरीर की पालना की तो इसी विचार से की कि सुदृढ़ शरीर से भले प्रकार स्वदेशी सेवा हो सके। बड़े प्रयत्‍नों से यह शुभ दिन प्राप्‍त हुआ। संयुक्‍त प्रान्त में इस तुच्छ शरीर का ही सौभाग्य होगा जो सन् 1857 ई० के गदर की घटनाओं के पश्‍चात् क्रान्तिकारी आन्दोलन के सम्बंध में इस प्रान्त के निवासी का पहला बलिदान मातृवेदी पर होगा।

सरकार की इच्छा है कि मुझे घोटकर मारे।


यदि आप पहचान गये है कि इस प्रसिद्ध क्रांतिकारी को तो उसे यहां खोजें

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