परदे के पीछे / जयप्रकाश चौकसे / सितम्बर 2016
Gadya Kosh से
सितम्बर 2016 के लेख
- 'और क्यों नाचे सपेरा' / जयप्रकाश चौकसे
- कवि मलिक मोहम्मद जायसी और इतिहास / जयप्रकाश चौकसे
- भविष्यवाणियों के आईने में भ्रम / जयप्रकाश चौकसे
- 'ओम नमो शिवाय:' दिल को मुश्किल से बचाता है / जयप्रकाश चौकसे
- गणपति उत्सव के बदलते स्वरूप / जयप्रकाश चौकसे
- मदर टेरेसा : मदर इंडिया में आम स्त्री / जयप्रकाश चौकसे
- क्या अमिताभ बच्चन आत्म-कथा लिखेंगे? / जयप्रकाश चौकसे
- एक दरवाजा जो हमेशा खुला रहता है / जयप्रकाश चौकसे
- आनंद राय का सानंद सिनेमा! / जयप्रकाश चौकसे
- ईश्वरीय कमतरियां और मानवीय साहस / जयप्रकाश चौकसे
- विज्ञापन का मुर्गा और सूर्य उदय / जयप्रकाश चौकसे
- फिल्मोद्योग की आवारगी और बेतरतीबी / जयप्रकाश चौकसे
- अति वाचाल हैं हमारी फिल्में / जयप्रकाश चौकसे
- ‘टाइगर’ की शीघ्र वापसी! / जयप्रकाश चौकसे
- मुंबई स्थित पंजाब पिंड में हलचल / जयप्रकाश चौकसे
- आम व्यक्ति के अच्छे काम पर लेबल लगाने को सत्ता बेचैन / जयप्रकाश चौकसे
- माया मिली न राम: ओम शांति ओम / जयप्रकाश चौकसे
- अंधकार बनाम प्रकाश में ‘पिंक’ का महत्व / जयप्रकाश चौकसे
- अन्याय आधारित व्यवस्था के बखिये उधेड़ती फिल्म / जयप्रकाश चौकसे
- 'जुड़वां' के बहाने आईएस जौहर का स्मरण / जयप्रकाश चौकसे
- हमारे सिनेमा बाज़ार में छवियों का तिलिस्म / जयप्रकाश चौकसे
- भारत की युद्ध फिल्में / जयप्रकाश चौकसे
- कैटरीना की किफायत और कैफियत / जयप्रकाश चौकसे
- फिल्म कॉर्पोरेट का अंधकार / जयप्रकाश चौकसे
- घाटियों से लौटती प्रति ध्वनि की तरह कथाएं / जयप्रकाश चौकसे
- विकास कुएं में कालीचाट / जयप्रकाश चौकसे